Madhu varma

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लेखनी कविता - तऊ न मेरे अघ अवगुन गनिहैं -तुलसीदास

तऊ न मेरे अघ अवगुन गनिहैं -तुलसीदास 


तऊ न मेरे अघ अवगुन गनिहैं।
 जौ जमराज काज सब परिहरि इहै ख्याल उर अनिहैं॥१॥
 चलिहैं छूटि, पुंज पापिनके असमंजस जिय जनिहैं।
 देखि खलल अधिकार प्रभूसों, मेरी भूरि भलाई भनिहैं॥२॥
 हँसि करिहैं परतीत भक्तकी भक्त सिरोमनि मनिहैं।
 ज्यों त्यों तुलसीदास कोसलपति, अपनायहि पर बनिहैं॥३॥

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